Friday, 3 October 2008

माँ काली के मन्दिर के निर्माण की शुरुआत...


शव साधना के तुंरत बाद माँ काली ने स्वयं मुझे एक दिन स्वप्न में कहा की जा मेरी एक मन्दिर की स्थापना रक्सौल में कर।
इस स्वप्न के बाद में सोच में पड़ गया की यह कैसे सम्भव है? ना तो मेरे पास पैसा था न ही जमीन। मैं सोच ही रहा था की मेरे घर के सामने रहने वाले सलेस टैक्स ऑफिसर "गोपाल प्रासाद जैसवाल" से जाके मैंने इस बारे मैं बात की।उन्होंने कहा की जमीन जब मिले तब मिले आप एक माँ काली की प्रतिमा पहले बना कर पंडाल मैं उसकी पूजा शुरू करें। मैं इस बात से खुश हुआ।
शिवरात्रि आने वाली थी इसलिए मैंने तय किया की इस शिवरात्रि मैं माँ काली की मिटटी की मूर्ति बना कर पूजा करूँगा और इस काम मैं लग गया.गोपाल प्रसाद जैसवाल ने माँ की प्रतिमा अपनी तरफ़ से भेंट की। और साथियों की सहायता से मैंने विधिपूर्वक माँ की पूजा शिवरात्रि के दिन पूर्ण की। इस पूजा से पहले रक्सौल में कही भी काली की पूजा नही हुई थी और कोई काली मन्दिर की स्थापना भी नही हुई थी. लोग माँ काली से डरते थे और मुझे भी डराने की कोशिश की। परन्तु मैं निष्ठां पूर्वक साधना करता रहा। इस पूजा के विसर्जन के ५-७ दिन बाद ही रक्सौल के नगर सेठ "जय किशन राम" ने मुझे अपने घर बुलवाया और मुझसे कहा की मैंने सुना है की तू माँ की पूजा करता है , मेरी पत्नी बोहत बीमार है, क्या तुम कुछ कर सकते हो?
मैंने सोचा की अगर मैं इनकी कुछ मदद कर सका तो शायद यह माँ के मन्दिर बनने मैं मुझे जमीन मैं मदद कर सकते हैं। इसी भावः से मैंने माँ से उनकी पत्नी के लिए प्रार्थना की। उनकी पत्नी को कैंसर था। उनका बचना नामुमकिन था। फ़िर मैंने नगर सेठ को यह कहा की इनकी बीमारी तो ठीक नही हो पायेगी। तब उन्होंने कहा की बीमारी ठीक न हो पाए तो क्या इनका दर्द कम करा सकते हो? तब मैंने माँ से प्रार्थना की और माँ ने मेरी बात सुनी। उस दिन के बाद नगर सेठ की पत्नी का दर्द लगभग ख़तम हो गया।
उनकी मृत्यु से पहले नगर सेठ ने मुझे फ़िर बुलवाया। और पुछा की क्या तुम्हे माँ काली का मन्दिर बनाना है रक्सौल मैं? मुझे कल रात माँ ने सपने मैं आके कहा की मैं तुम्हे मन्दिर बनने के लिए भूमि दे दूँ?
उनकी बात सुन कर मेरी खुशी का ठिकाना न था। उन्होंने मुझे अपनी फुलवारी से अपनी पसंद का जमीन चुनने को कहा। और बोला जा जितना मन करे जमीन ले ले
मैं भाग के नीचे आया और अपने प्रथम शिष्य (नगर सेठ के भाई के बेटे किरण शंकर सर्राफ ) को बताया की आपके चाचा ने मुझे जमीन दे दिया है। यह सुन कर किरण चकित हो गए की जमीन कैसे दे दी उनके चाचा ने!!!
ऐसा उन्होंने इस लिए सोचा क्योंकि नगर सेठ की कंजूसी सभी जानते थे। उन्होंने आजतक कभी किसी को कुछ नही दिया था।फ़िर मैंने जमीन की बाउंड्री कराने के बाद अगले साल उसी जमीन पर फ़िर से माँ की पूजा शिवरात्रि वाले दिन संपन्न की।

घटना यही ख़तम नहीं होती। मन्दिर निर्मांड की इच्षा मन में लेके मैं अपनी साधना भी करता रहा। इस बीच मैंने अनेक साधना की.

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