पुत्र प्राप्ति हेतु सिद्ध किया हुआ शिवलिंगी जड़ी नित्य खाली पेट जो महिलाए दूध के साथ खाती हैं उन्हे अवश्य पुत्र प्राप्ति होती है. लेकिन यह शिवलिंगी जड़ी किसी वाम मार्गी साधक द्वारा सिद्ध किया होना चाहिए ओर इसका सेवन कम से कम एक साल तक लागातार करना पड़ता है.
For Indian Customers: Rs 5100 for 250grams.
For NRI Customers: $ 120 for 250 grams
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Saturday 4 December, 2010
वास्तु दोष निवारण उपाय
जब भी नया घर लेते हैं ओर उसमें परेशानिया आने लगे जैसे की अनेक प्रकार के आवाज़ सुनाई देना, भय लगना, घर में मृत्यु हो जाना, संतान की मृत्यु हो जाना, व्यापार में मंदी होना, एकाएक घर में आग लग जाना, घर के लोगो का अस्वस्थ हो जाना यह सब वास्तु दोष माने जाते हैं.
इसके निवारण के लिए वास्तु दोष निवारण कलश का अविष्कार किया गया है. ओर जिन लोगों ने भी इसे अपने घर के इशान कोने में अमावस्या की रात को स्थापित किया है उनकी यह सभी बाधाएँ डोर हुई है.
नोट: इस कलश का प्रयोग तभी करें जब आप सभी क्रियाओं से निराश हो गये हो.
For Indian Customers: Rs 11000 INR
For NRI Customers: $250
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इसके निवारण के लिए वास्तु दोष निवारण कलश का अविष्कार किया गया है. ओर जिन लोगों ने भी इसे अपने घर के इशान कोने में अमावस्या की रात को स्थापित किया है उनकी यह सभी बाधाएँ डोर हुई है.
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काला जादू ऑर ब्लॅक मॅजिक से ग्रस्त लोगों के लिए चमत्कारी उपाय
जिस व्यक्ति के घर में लगातार कोई व्यक्ति बीमार रहता हो ऑर डॉक्टर के दिखाने के बाद भी वो अस्वस्थ रहता हो या
कोई भी व्यापार में तरक्की नही हो पाती हो, लगातार घर में दुर्घटना होती रहती है.
किसी भी मेडिकल प्राब्लम के ना होने के बावजूद भी संतान का जन्म नही हो पा रहा हो.
पति पत्नी के बीच लगातार मन मुटाव है या फिर पति या पत्नी किसी दूसरे के प्रभाव में आ कर एक दूसरे से अलग हो गये हो,शरीर पर सो के उठने के बाद यदि काले काले धब्बे दिखाई देते है तो यह कथित जादू टोना या नज़र लगने के प्रभाव माने जाते है.
जब भी यह सब प्रॉब्लम्स किसी डॉक्टर से इलाज़ लेने के बाद भी ठीक ना हो तब आप एक बार सर्व बाधा निवारण यंत्र को धारण कर के देखें. इस से पीड़ित व्यक्ति को काफ़ी हद तक फ़ायदा होता है.
For Indian Customers: Rs7500
For NRI Customers: $170.
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कोई भी व्यापार में तरक्की नही हो पाती हो, लगातार घर में दुर्घटना होती रहती है.
किसी भी मेडिकल प्राब्लम के ना होने के बावजूद भी संतान का जन्म नही हो पा रहा हो.
पति पत्नी के बीच लगातार मन मुटाव है या फिर पति या पत्नी किसी दूसरे के प्रभाव में आ कर एक दूसरे से अलग हो गये हो,शरीर पर सो के उठने के बाद यदि काले काले धब्बे दिखाई देते है तो यह कथित जादू टोना या नज़र लगने के प्रभाव माने जाते है.
जब भी यह सब प्रॉब्लम्स किसी डॉक्टर से इलाज़ लेने के बाद भी ठीक ना हो तब आप एक बार सर्व बाधा निवारण यंत्र को धारण कर के देखें. इस से पीड़ित व्यक्ति को काफ़ी हद तक फ़ायदा होता है.
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Saturday 9 October, 2010
अश्विन नवरात्रा २०१० प्रारंभ - ६०२ कलश की सामूहिक स्थापना.
सेवक संजयनाथ काली मंदिर में आज अश्विन नवरात्रा का प्रारंभ बड़ी ही धूम धाम से शुरू हुआ.
इस साल सामूहिक कलश स्थापना के पिछले सभी रेकॉर्ड टूट गये ऑर मंदिर के प्रांगांद में ६०२ कलशो की स्थापना हुई ऑर विधिवत नवरात्रा की पूजा की शुरुआत भी हुई.
यह अपने आप में एक विश्व रेकॉर्ड है. भारत तथा विश्व के किसी भी मंदिर में एकसाथ इतनी बड़ी सामूहिक पूजा नही होती.
भारत के अनेको राज्यो तथा ऑस्ट्रेलिया, चाइना, नेपाल, इंग्लेंड, अमेरिका,श्रीलंका तथा मारिशियस से भक्तों के कलश स्थापना के लिए नवरात्रा शुरू होने से १० दिन पहले से ही बुकिंग हो गयी थी.
इस साल सामूहिक कलश स्थापना के पिछले सभी रेकॉर्ड टूट गये ऑर मंदिर के प्रांगांद में ६०२ कलशो की स्थापना हुई ऑर विधिवत नवरात्रा की पूजा की शुरुआत भी हुई.
यह अपने आप में एक विश्व रेकॉर्ड है. भारत तथा विश्व के किसी भी मंदिर में एकसाथ इतनी बड़ी सामूहिक पूजा नही होती.
भारत के अनेको राज्यो तथा ऑस्ट्रेलिया, चाइना, नेपाल, इंग्लेंड, अमेरिका,श्रीलंका तथा मारिशियस से भक्तों के कलश स्थापना के लिए नवरात्रा शुरू होने से १० दिन पहले से ही बुकिंग हो गयी थी.
Friday 30 July, 2010
सावन माह में भस्म लगाने का महात्म
सावन माह में भगवान शिव पर भस्म चढ़ाना एवं भस्म का त्रिपुंड बनाना कोटि महायज्ञ करने के सामान होता है.
साथ साथ उस भस्म कों साधक अपने मस्तक एवं अनेक अंगों पर लगते हैं तो उसके अलग अलग फल प्राप्त होते हैं.
भस्म दो प्रकार के होते हैं:
१. महा भस्म
२. स्वल्प भस्म
महा भस्म शिवजी का मुख्य स्वरुप है. पर स्वल्प भस्म की अनेक शाखाएं हैं स्त्रोत, स्मार्त और लौकिक भस्म अत्यंत प्रसिद्द स्वल्प भस्म की शाखाएं हैं.
जो भस्म वेद की रीति से धारण की जाती हैं उसे स्त्रोत भस्म कहा जाता है,
जो भस्म स्मृति अथवा पुरानो की रीति से धारण की जाती है उसे स्मार्त कहते हैं.
जो भस्म सांसारिक अग्नि से उत्पन्न होती है और धारण की जाती है उसे लौकिक कहा जाता है.
स्त्रोत तथा स्मार्त भस्म सिर्फ आत्म ज्ञानी ब्रह्मण एवं सन्यासियों कों ही धारण करना चाहिए लेकिन लौकिक भस्म सभी वर्ण के लोग धारण कर सकते हैं. लौकिक भस्म तांत्रिक मन्त्र या भगवान शिव का नाम लेके अपने शारीर पर धारण करना चाहिए. शिव पुराण में लिखा है की भगवान विष्णु, ब्रह्मा के साथ साथ सभी योगी, सिद्ध नाग आदि सभी भस्म धारण करते हैं एवं वेद का कथन है की बिना भस्म धारण किये सब प्रकार के आचार तथा पूजा निष्फल होते हैं. क्योंकि ऐसे मनुष्यों पर ना तो शिव जिसमें ही कृपा करते हैं और न ही उनका कोई कार्य ही सिद्ध होता है.
भस्म का महात्म अनादी तथा अनंत है. भस्म कों धारण करने में कुल और वर्ण का विचार नहीं होता है. भस्म धारण करने वाले मनुष्य कों तीर्थ के सामान समझना चाहिए. भस्म धारण करने वालों कों सम्पूर्ण विद्याओं का निधान समझना चाहिए.
जो मनुष्य भस्म धारण करने वालों की निंदा करता है वह अपने जन्म कों निष्फल कर देता है. पुरुष, स्त्री, बालक, वृद्ध और तरुण सभी भस्म धारण कर सकते हैं. भस्म धारण करने वाले कों अधिक पवित्रता की आवश्यकता नहीं है.
जिस ललाट पर भस्म न हो उसे धिक्कार है, जिस गाँव में शिव मंदिर न हो उसे भी धिक्कार है. सम्पूर्ण देवता मुनि येही कहते हैं की जो लोग भस्म की निंदा करते है वोह बहुत वर्षों तक नरक में निवास करते हैं. :
शरीर के अंगों पर भस्म कहाँ लगाएं:
सर, ललाट, कर्ण, नेत्र , नासिका, मुख, कंठ , भुजा, उदर, हाथ, छाती, पंजर, नाभि, मुस्क, त्रिबेली , दोनों जन्घो के मध्य का भाग, तथा चरण यह सब बत्तीस स्थान हैं लेकिन आम भक्तों के लिए सिर्फ मस्तक में नित्य त्रिपुंड लगाना ही गंगा स्नान करने के फल सामान है.
जो भी भक्त सावन के महीने में भी कम से कम नित्य भगवान शिवजी कों भस्म अर्पण कर के स्वयं अपने माथे में त्रिपुंड (भस्म) लगाये तो उसके पास हमेशा धन धन्य, स्वास्थ तथा ख़ुशी बानी रहती है.
सावन में एकादश रूद्र पूजा की विधि के लिए इस पृष्ठ कों पढ़ें: रूद्र पूजा महातम
साथ साथ उस भस्म कों साधक अपने मस्तक एवं अनेक अंगों पर लगते हैं तो उसके अलग अलग फल प्राप्त होते हैं.
भस्म दो प्रकार के होते हैं:
१. महा भस्म
२. स्वल्प भस्म
महा भस्म शिवजी का मुख्य स्वरुप है. पर स्वल्प भस्म की अनेक शाखाएं हैं स्त्रोत, स्मार्त और लौकिक भस्म अत्यंत प्रसिद्द स्वल्प भस्म की शाखाएं हैं.
जो भस्म वेद की रीति से धारण की जाती हैं उसे स्त्रोत भस्म कहा जाता है,
जो भस्म स्मृति अथवा पुरानो की रीति से धारण की जाती है उसे स्मार्त कहते हैं.
जो भस्म सांसारिक अग्नि से उत्पन्न होती है और धारण की जाती है उसे लौकिक कहा जाता है.
स्त्रोत तथा स्मार्त भस्म सिर्फ आत्म ज्ञानी ब्रह्मण एवं सन्यासियों कों ही धारण करना चाहिए लेकिन लौकिक भस्म सभी वर्ण के लोग धारण कर सकते हैं. लौकिक भस्म तांत्रिक मन्त्र या भगवान शिव का नाम लेके अपने शारीर पर धारण करना चाहिए. शिव पुराण में लिखा है की भगवान विष्णु, ब्रह्मा के साथ साथ सभी योगी, सिद्ध नाग आदि सभी भस्म धारण करते हैं एवं वेद का कथन है की बिना भस्म धारण किये सब प्रकार के आचार तथा पूजा निष्फल होते हैं. क्योंकि ऐसे मनुष्यों पर ना तो शिव जिसमें ही कृपा करते हैं और न ही उनका कोई कार्य ही सिद्ध होता है.
भस्म का महात्म अनादी तथा अनंत है. भस्म कों धारण करने में कुल और वर्ण का विचार नहीं होता है. भस्म धारण करने वाले मनुष्य कों तीर्थ के सामान समझना चाहिए. भस्म धारण करने वालों कों सम्पूर्ण विद्याओं का निधान समझना चाहिए.
जो मनुष्य भस्म धारण करने वालों की निंदा करता है वह अपने जन्म कों निष्फल कर देता है. पुरुष, स्त्री, बालक, वृद्ध और तरुण सभी भस्म धारण कर सकते हैं. भस्म धारण करने वाले कों अधिक पवित्रता की आवश्यकता नहीं है.
जिस ललाट पर भस्म न हो उसे धिक्कार है, जिस गाँव में शिव मंदिर न हो उसे भी धिक्कार है. सम्पूर्ण देवता मुनि येही कहते हैं की जो लोग भस्म की निंदा करते है वोह बहुत वर्षों तक नरक में निवास करते हैं. :
शरीर के अंगों पर भस्म कहाँ लगाएं:
सर, ललाट, कर्ण, नेत्र , नासिका, मुख, कंठ , भुजा, उदर, हाथ, छाती, पंजर, नाभि, मुस्क, त्रिबेली , दोनों जन्घो के मध्य का भाग, तथा चरण यह सब बत्तीस स्थान हैं लेकिन आम भक्तों के लिए सिर्फ मस्तक में नित्य त्रिपुंड लगाना ही गंगा स्नान करने के फल सामान है.
जो भी भक्त सावन के महीने में भी कम से कम नित्य भगवान शिवजी कों भस्म अर्पण कर के स्वयं अपने माथे में त्रिपुंड (भस्म) लगाये तो उसके पास हमेशा धन धन्य, स्वास्थ तथा ख़ुशी बानी रहती है.
सावन में एकादश रूद्र पूजा की विधि के लिए इस पृष्ठ कों पढ़ें: रूद्र पूजा महातम
Wednesday 14 April, 2010
जगतगुरु वामचार्य सेवक संजयनाथ द्वारा महा कुम्भ हरिद्वार में शाही स्नान संपन्न
जगतगुरु वामचार्य सेवक संजयनाथ द्वारा महा कुम्भ हरिद्वार में शाही स्नान आज संपन्न. गुरुनाथ अखाडा की पेशवाई ने आज महा कुम्भ के अंतिम शाही स्नान में चार चाँद लगा दिए. भक्त जानो का उल्लास और भीड़ देखने वाली और अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना थी.
जगतगुरु वामचार्य की एक झलक पाने के लिए सभी श्रद्धालु जन अपने अपने पंडालों से बहार आ आ कर, भीड़ कों चीरते हुए उन्हें शाष्टांग दंडवत कर अपने आप कों सौभाग्यशाली बना रहे थे.
जगतगुरु वामचार्य महाराज की पेशवाई अपने आप में इतनी मनमोहक थी की गुरुनाथ अखाडा का नाम समस्त सनातन धर्म के बड़े बड़े अखाड़ो से कहीं पीछे नहीं रहा.
जगतगुरु वामचार्य की एक झलक पाने के लिए सभी श्रद्धालु जन अपने अपने पंडालों से बहार आ आ कर, भीड़ कों चीरते हुए उन्हें शाष्टांग दंडवत कर अपने आप कों सौभाग्यशाली बना रहे थे.
जगतगुरु वामचार्य महाराज की पेशवाई अपने आप में इतनी मनमोहक थी की गुरुनाथ अखाडा का नाम समस्त सनातन धर्म के बड़े बड़े अखाड़ो से कहीं पीछे नहीं रहा.
Friday 9 April, 2010
महा कुम्भ में गुरुनाथ अखाडा का खालसा
गुरुनाथ अखाडा के द्वारा गुरुनाथ अखाडा के सभी साधू संत एवं भक्तो के लिए महा कुम्भ के अवसर पर गौरी शंकर सेक्टर ब्लाक यू -151/152 प्लाट पर भक्तो के रहने एवं खाने पीने की व्यवस्था की गयी है।
आप सभी भक्तो कों गुरुनाथ अखाडा के जगतगुरु वामचार्य सेवक संजय नाथ महाराज द्वारा सादर आमंत्रित किया जा रहा है।
आप सभी भक्तो कों गुरुनाथ अखाडा के जगतगुरु वामचार्य सेवक संजय नाथ महाराज द्वारा सादर आमंत्रित किया जा रहा है।
गुरुनाथ अखाडा का खालसा अभी भी हरिद्वार महा कुम्भ में वास कर रहा है। भक्तजन वहा जा सकते है। जगतगुरु वामचार्य सेवक संजयनाथ महाराज जी से महा कुम्भ हरिद्वार में भेंट ५ अप्रैल २०१० से १८ अप्रैल २०१० तक की जा सकती है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
सेवक सौरभनाथ
फ़ोन नंबर - 09931004470
सेवक सौरभनाथ
फ़ोन नंबर - 09931004470
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