Thursday, 2 October 2008

साधना की शुरुआत.....

वर्ष १९८८ में आश्रम रोड से होते हुए में अपने घर की तरफ़ जा रहा था तभी एक मैले फटे कपडे पहने हुए व्यक्ति ने मुझे आवाज़ दी।मैं उनके पास गया तब उन्होंने कहा की मुझे मांस और चावल खिला बेटा। पर मेरे पास पैसे नही थे। परन्तु मैं संतो की बोहत इज्ज़त करता था अतः मैंने पास के एक होटल में उन्हे बिठाया और खाना खिलाया। होटल के मालिक से कहा की में पैसे ले के आ रहा हूँ। पैसे लेके आने के बाद उस व्यक्ति ने कहा की तुम मुझे अपने घर ले चलो। मैं मन ही मन डरा की अगर मैं इन्हे घर ले गया तो माँ नाराज़ होंगी। पर फ़िर भी उन्हे घर ले गया। घर पर उन्होंने चाय पीने की इक्षा व्यक्त की। मैंने सोचा की माँ से न कहूँ , इसी भय से मैं ख़ुद चाय बनाने लगा तो माँ ने आवाज़ लगायी। उन्हे अचरज हुआ की मैं क्यों चाय बना रहा हूँ, क्योंकि मैंने कभी कोई घर का काम नही किया था। फ़िर माँ उस व्यक्ति से मिलने नीचे आई तो वह व्यक्ति मेरी माँ के चरण पकड़ के रोने लगा। और बोला "माँ तू धन्य है की तुने ऐसे पुत्र को जनम दिया। इसको किसी विशेष कार्य के लिए भेजा गया है।"
फ़िर मैं उन्हे रोड तक उनको छोड़ने गया क्योंकि मुझे माँ से डर था की वोह नाराज़ हो जाएँगी। तब उस व्यक्ति ने मुझे पकड़ लिया और कहा की क्या तुम कुछ तांत्रिक साधना सीखोगे? इस बात को सुन के मुझे बोहत प्रसंता हुई क्योंकि मैं बचपन से ही तंत्र मंत्र के लिए रूचि रखता था। तो मैंने उन्हे हाँ कह दिया।
वह मेरा घर देख चुके थे इसलिए करीब १५ दिन बाद वह फ़िर मेरे घर पधारे और मुझे कहा की चल मैं तुझे साधना सिखाऊंगा मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई। तब मैंने उनसे उनका परिचय पुछा। तब उन्होंने बताया की मैं तिबेत्तियन संत सूफी लामा हूँ और मैं नेपाल में रहता हूँ।
फ़िर मैंने उनसे पुछा की आप कौन सी साधना सिखायेंगे तब उन्होंने कहा की मैं तुम्हे १०० साधना सिखाऊंगा।मैं इतना खुश हुआ यह सुन कर की मैं १०० साधना सीखूंगा।
पर उन्होंने कहा की इसके लिए तुझे मेरे साथ आज ही चलना होगा। अब मैं क्या करता। मैंने घर पे बेतिया जाने का झूठ बोला और इनके साथ गया.वह मुझे नेपाल के ओर ले गए। मैं इस घटना से पहले नेपाल में बीरगंज से आगे कही नही गया था। पर उन्होंने एक बस पे बैठा कर मुझे हथोडा नामक स्थान से पहले ले गए।
और एक नदी पार करा कर मुझे एक घन घोर जंगल की ओर ले गए।
मुझे भूख लगने पे मैंने उनसे खाने की मांग की.बाबा ने मुझे बैठने को कहा और ख़ुद खाना लेने चले गए। कुछ ही समय मैं वह हमारे लिए मांस और चावल ले के आए।
मैं चकित रह गया की इतनी जल्दी इस घनघोर जंगल में भोजन कहा से आ गया!!! खाना खाने के बाद हम सो गए।जब मेरी नींद खुली तो चारो ओर घोर अँधेरा था। मैं बोहत डर चुका था की कही मैं किसी ग़लत संगती में तो नही फंस गया?
बड़ी हिम्मत कर के मैंने उस बाबा को आवाज़ लगायी। " बाबा आप कहा है?"
बाबा ने आवाज़ लगायी "अरे मैं तेरे पीछे बैठा हूँ" जब मैंने घूम के देखा तो उनके चारों तरफ़ एक रौशनी नज़र आ रही थी और वह स्वयं बैठे हुए थे।उन्होंने कहा की चल अब साधना का समय हो गया है।

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