चौथा दिन की महा देवी माँ षोडशी स्वरुप हैं।
इनकी साधना साधक को अग्नि कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। अग्नि कोन पूर्व दक्षिण दिशा के बीच के कोन को कहते हैं।-क्रीं ह्रीं षोडशी ह्रीं क्रीं स्वाहा: इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनका यौवन बना रहता है तथा उस व्यक्ति मैं आकर्षण की शक्ति बढती है। साथ ही साथ जो पुरूष या महिला इस मंत्र का जाप करते हैं उन्हें कार्तिक के सामान वीर पुत्र की प्राप्ति होती है।
इनकी साधना साधक को अग्नि कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। अग्नि कोन पूर्व दक्षिण दिशा के बीच के कोन को कहते हैं।-क्रीं ह्रीं षोडशी ह्रीं क्रीं स्वाहा: इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनका यौवन बना रहता है तथा उस व्यक्ति मैं आकर्षण की शक्ति बढती है। साथ ही साथ जो पुरूष या महिला इस मंत्र का जाप करते हैं उन्हें कार्तिक के सामान वीर पुत्र की प्राप्ति होती है।
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