Tuesday 12 April, 2011

कुवारी पूजन का महत्व

हिंदू धर्म में कुवारी पूजन का महत्त्व भारत वर्ष में प्राचीन काल से चला आ रहा है। हमारे शास्त्रों में कुआरी को अग्नि, सूर्य, वायु, चंद्रमा,नक्षत्र, जल और ब्रह्म की संज्ञा दी गई है। कुआरी को खिले हुए कमल के गुच्छे के सामान नवीन और कोमल कहा गया है। कुआरी के नेत्र रूपी कमल विश्व स्वरूपी जल में तैरते रहते हैं। वह मनुष्यों को प्रेम और करुना भरी दृष्टि से देखती हैं। उसकी वाणी में काफी मिठास होती। इस में कोई शंशय नही है की कुआरी को देखने के बाद मनुष्य का पुरूष भावः भी मिट जाता है।
इश्वर की आराधना कुआरी के पवित्र रूप में करने से व्यक्ति के अन्दर आध्यात्म के प्रति अच्छी विचारधारा का विकास होता है। मनुष्य के अन्दर के मनोविकार एवं दुष्ट भावो का नाश होता है और समाज की नारियों के प्रति उसके भावः में पवित्रता आती है। उसका मस्तक स्वतः कुवारियों को देख कर झुक जाता है।
शास्त्रों में नारी को पवित्रता के रूप में देखना एक अपने आप में उच्च साधना है। तथा जो भक्त देवी की उपासना करते हैं एवं कुवारियों की पूजा करते हैं उनका कभी भी पतन नही होता। कुवारी पूजन से हक्तो के अन्दर एक विशेष प्रकार की शक्ति का समावेश होता है जो जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति के मार्ग को प्रशस्त्र करता है।
तंत्रों में भी कुअरियों को साधना के रूप में अपनाया जाता है। जो भक्त नित्य कुवारियों का पूजन करता है एवं अन्न, वस्त्र दान करता है उसको संसार के सभी भौतिक सुखो की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार हिंदू धर्म में ब्रह्मण भोज का महत्त्व है उसी प्रकार कुवारी पूजन एवं भोज का महत्त्व है।
शास्त्रों में यह भी वर्णन है की जिस स्थान पर कुवारियों की पूजा होती है उस स्थान से चारो दिशाओं के पाँच कोसो तक के क्षेत्र में सुख शान्ति का वास और दरिद्रता का नाश होता है। ऋषि मनु जैसे महर्षि ने कहा है की जहा नारी की पूजा होती है वह देवता का निवास होता है।
किस कुवारी की पूजा करनी चाहिए?
१ ब्रह्मण की लड़की दस वर्ष की आयु से नीचे
२ क्षत्रिय की लड़की दस वर्ष की आयु से नीचे
३ वैश्य की लड़की दस वर्ष की आयु से नीचे
४ शुद्र की लड़की दस वर्ष की आयु से नीचे
५ प्रताडित नारी की लड़की दस वर्ष की आयु से नीचे
यह सभी कुवारी लडकियां पूजन के योग्य हैं। जिस कुवारी पूजन में किसी एक ही वर्ण की लड़किया होती हैं उसे निम्न स्तर का पूजन कहा जाता है। जिस कुवारी पूजन में दो वर्ण की लड़किया होती हैं उसे मध्य स्तर का पूजन कहा जाता है। जिस कुवारी पूजन में पांचो वर्णों की कुवारी लड़कियां हो उसे उच्चकोटि का कुवारी पूजन माना जाता है।
कैसे करें कुवारी पूजन?
नवमी के दिन हवन करने के पश्चात् कुवारियों को नए वस्त्र पहना कर विधिवत पूजा अर्चना कर उत्तम पकवानों का भोग लगा कर, दक्षिणा दान कर, आरती करें और अंत में उन कुवारियों के झूठन को प्रसाद के रूप में स्वयं ग्रहण करें। शास्त्रों में लिखा गया है की ऐसा करने से महाव्याधि (कुष्ठ ) जैसे रोगों का नाश होता है।

दसवां दिन: माँ कमला

दसवें दिन की महा देवी माँ कमला स्वरुप
हैं। इनकी साधना साधक को आकाश की ओर मुख करके करनी चाहिए।इनका महा मंत्र - क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ कमला का जाप दसो महाविद्या में सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। इनका जाप करने वाले जीवन में कभी भी दरिद्र नही होते। शास्त्रों में कहा गया है की जो माँ कमला की साधना करते हैं उन्हे सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं।

नौवां दिन: माँ मातंगी

नौवे दिन की महा देवी माँ मातंगी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को पृथ्वी की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र - क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ मातंगी का जाप ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए जिनके जीवन में माता के प्रेम की कमी हो अथवा उनकी माता को कोई कष्ट हो। जो किसान आकाल या बाढ़ से पीड़ित होते है वे भी माँ मातंगी का अगर सामूहिक रूप से जाप करे तो अकाल या बढ़ का प्रभाव कम होता है.

Monday 11 April, 2011

आठवां दिन: माँ बंगलामुखी


आठवे दिन की महा देवी माँ बंगलामुखी स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को भंडार कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। भंडार कोण पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच का कोण होता है।इनका महा मंत्र - क्रीं ह्रीं बंगलामुखी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें। माँ बंगलामुखी का जाप ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए जिनके ऊपर किसी तांत्रिक क्रिया को कराया जा रहा हो और जिस से वो परेशान हो। इस मंत्र का जाप करने से वैसे दुष्ट व्यक्तियों का नाश होता है। इनका जाप करते समय साधक को पीला वस्त्र धारण करना चाहिए और पीले माला से जाप करना चाहिए। उस माला को जाप ख़त्म होने के बाद किसी पीपल के पेड़ पर टांग देना चाहिए.

Sunday 10 April, 2011

सातवाँ दिन: माँ धूमावती

सातवें दिन की महा देवी माँ धूमावती स्वरुप हैं। इनकी साधना साधक को पश्चिम कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र - क्रीं ह्रीं धूमावती ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनके घर से रोग, कलह, दरिद्रता का नाश होता है.

Saturday 9 April, 2011

छठा दिन: माँ भैरवी

छठे दिन की महा देवी माँ भैरवी स्वरुप हैं इनकी साधना साधक को नैरित कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए।नैरित कोण दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच का कोण होता है।इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं भैरवी ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो दुष्टों का नाश होता है तथा अकाल मृत्यु , दुष्टात्मा के प्रभाव से बचाव होता hai।

पांचवा दिन: माँ छिन्मस्तिका काली


पांचवा दिन की महा देवी माँ छिन्मस्तिका काली स्वरुप हैं।
इनकी साधना साधक को दक्षिण कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं छिन्मस्तिका ह्रीं क्रीं स्वाहा: है। इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो दुष्टों का नाश होता है तथा उस व्यक्ति के तमो गुन और रजो गुन का भी नाश होता है। साथ ही साथ जो पुरूष या महिला इस मंत्र का जाप करते हैं उनके काम वासना को नियंत्रित करता है.

Thursday 7 April, 2011

चौथा दिन- माँ षोडशी

चौथा दिन की महा देवी माँ षोडशी स्वरुप हैं।
इनकी साधना साधक को अग्नि कोन की ओर मुख करके करनी चाहिए। अग्नि कोन पूर्व दक्षिण दिशा के बीच के कोन को कहते हैं।-क्रीं ह्रीं षोडशी ह्रीं क्रीं स्वाहा: इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनका यौवन बना रहता है तथा उस व्यक्ति मैं आकर्षण की शक्ति बढती है। साथ ही साथ जो पुरूष या महिला इस मंत्र का जाप करते हैं उन्हें कार्तिक के सामान वीर पुत्र की प्राप्ति होती है।

Wednesday 6 April, 2011

तीसरा दिन: माँ भुवनेश्वरी

तीसरे दिन की महा देवी माँ भुवनेश्वरी स्वरुप हैं
इनकी साधना साधक को पूरब की ओर मुख करके करनी चाहिए।
इनका महा मंत्र क्रीं ह्रीं भुवनेश्वरी ह्रीं क्रीं स्वाहा.
इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।
सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम १०८ -१०८ बार इस मंत्र का जाप करें तो भुवन के सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ उसे प्राप्त होती हैं तथा दरिद्र व्यक्तियों का इनकी आराधना करना सबसे उचित माना गया है.

द्वितीय दिन: माँ तारा की साधना.


दूसरे दिन की महा देवी माँ तारा स्वरुप हैं
इनकी साधना साधक को ईशान कोने की ओर मुख करके करनी चाहिए। ईशान कोन उत्तर पूर्व दिशा के बीच के कोन को कहते हैं.
इनका महा मंत्र -क्रीं ह्रीं तारा ह्रीं क्रीं स्वाहा.
इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।
सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस महा मंत्र का जाप १०८-१०८ बार करें तो उनके पुत्र के कष्टों का नाश होता है. अथवा अगर पुत्रहीन स्त्रियाँ यह जाप करें तो उन्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस मन्त्र के जाप से दुश्मनों पर विजय की प्राप्ति भी होती है.

Tuesday 5 April, 2011

नवरात्र प्रारम्भ- प्रथम दिन माँ काली


नवरात्र में दस महा विद्या की साधना सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। उच्च्य कोटि के साधक चैत्र नवरात्र में ही दस महाविद्या की साधना को सिद्ध किया करते हैं. उन सभी भक्तो और साधुओं के लिए दस महाविद्या की साधना कैसे करें मैं यहाँ संचिप्त में वर्णन कर रहा हूँ।

प्रथम दिन की महा देवी काली स्वरुप हैं
इनकी साधना साधक को उत्तर की ओर मुख करके करनी चाहिए
इनका महा मंत्र - क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा:
इस मंत्र का कम से कम ११०० बार जाप करना चाहिए तथा विशेष सिद्धि के लिए विशेष जाप की आवशकता होती है।

दस महाविद्या की साधना करनेवाले सभी साधको को ९ दिन फलहार में रहना चाहिए तथा किसी एक रंग के वस्त्र को नौ दिन धारण करना चाहिए।
रंगों में तीन रंग प्रमुख हैं- काला (उत्तम ), लाल (मध्य ), सफ़ेद (निम्न)। इस प्रकार का साधना विशेष साधको के लिए है। परन्तु सामान्य भक्तजन न्यूनतम सुबह शाम इस म़हामंत्र का जाप 108 बार करें तो उनके घरमें सुख शान्ति बनी रहती है और आकाल मृत्यु नही होती है.

मैं इस ब्लॉग में नवों दिन दस महा विद्या की देवियों की पूजा का इसी प्रकार वर्णन करूँगा। विस्तृत जानकारी के लिए संजय्तंत्रम पुस्तक को पढे। यह पुस्तक आप मेरी साईट Books To Download से खरीद सकते हैं.